नेपाल में उठा सियासी तूफान फिलहाल थमता नहीं दिख रहा है। देश के प्रधानमंत्री और कम्युनिस्ट पार्टी के को-चेयर के खेमों ने स्टैंडिंग कमिटी की बैठक दोबारा शुरू करने पर रजामंदी जता दी और पुष्प कमल दहल ने कोई विरोध प्रदर्शन नहीं करने पर सहमति जताई लेकिन फिर भी पीएम के सपॉर्ट में बुधवार को कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए। वहीं, नेपाल में चीन की राजदूत हाओ यान्की ने आखिरकार दहल से मुलाकात की है जो अभी तक उनसे नहीं मिले थे।
यान्की ने दहल के घर की मुलाकात
दहल के एक करीबी सूत्र ने काठमांडू पोस्ट को बताया है कि गुरुवार सुबह 9 बजे हाओ दहल के निवास पर पहुंचीं और करीब 50 मिनट तक बात की। बैठक में क्या चर्चा हुई, इसे लेकर विस्तृत जानकारी का अभी इंतजार है। नेपाल की राजनीति में हलचल होने के साथ ही हाओ ने एक के बाद एक कई नेताओं के संग बैठकें की हैं, जिनमें राष्ट्रपति बिद्या भंडारी, पीएम ओली, पार्टी के सीनियर नेता माधव कुमाप नेपाल और झालनाथ खनाल सामिल रहे। हालांकि, अभी तक प्रचंड उनसे मिलने के लिए तैयार नहीं थे।
विफल रही ओली-दहल की वार्ता?
इससे पहले ओली और दहल ने मंगलवार को चर्चा में फैसला किया कि बुधवार को स्टैंडिंग कमिटी की बैठक की जाएगी लेकिन बैठक को शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दिया। पार्टी के सूत्र इसे दोनों नेताओं के बीच बातचीत की विफलता के तौर पर देखते हैं। सोमवार को दोनों नेताओं ने एक के बाद एक 6 बैठकें कीं। बावजूद उसके कोई ठोस नतीजा निकलता नहीं दिख रहा है।
फिर से होगी मुलाकात
दहल के प्रेस कोऑर्डिनेटर बिश्नु सपकोटा ने बताया है कि बुधवार शाम को भी ओली और दहल ने पीएम आवास में दो घंटे की बैठक की लेकिन फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि दोनों के मतभेद सुलझे नहीं हैं और वे फिर से मिलेंगे। पार्टी प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने भी बताया है कि दोनों नेता अपने-अपने रुख पर कायम हैं और बीच का रास्ता नहीं निकला है।
ओली इस्तीफे पर राजी नहीं
दोनों धड़ों के समर्थक भी सड़कों पर हैं जिससे हालात सुधर नहीं रहे। काठमांडू में बुधवार को ओली के समर्थकों ने कई प्रदर्शन किए जिसके बाद पूरे देश में रैलियां होने लगीं। हालात ऐसे हो गए कि सपतरी में दोनों समर्थक दल आमने-सामने आ गए। श्रेष्ठ का कहना है कि पार्टी की टूटना नहीं चाहिए वरना जनता ठगा हुआ महसूस करेगी। यही दलील ओली भी दे रहे हैं। उनका कहना है कि पार्टी उनसे जो कहेगी, वह करेंगे और अपना काम करने का तरीका बदल देंगे लेकिन इस्तीफा नहीं देंगे क्योंकि लोगों के बहुमत से वह पीएम बने हैं और पार्टी की अध्यक्षता भी चुने जाने के बाद मिली है। दूसरी ओर दहल, माधव नेपाल और बामदेव गौतम पार्टी और सरकार में बड़ी भूमिका चाह रहे हैं। उन्हें लगता है कि ओली अपने मन से काम करते हैं और सरकार के फैसलों में पार्टी से राय नहीं करते हैं। उनका कहना है कि नेपाल के लोकतंत्र में सरकार पार्टी चलाती है, एक शख्स नहीं।
अभी कई रास्ते, लेकिन फिलहाल सुलह नहीं
पार्टी के नेताओं का यह भी कहना है कि हो सकता है ओली पिछले साल नवंबर में हुई डील को लागू करने के लिए राजी हो जाएं। इसके तहत दहल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था और ओली को पांच साल की सरकार चलाने का जिम्मा दिया गया था। हालांकि, ओली ने दहल को कोई जिम्मेदारी नहीं दी और खुद को सीनियर अध्यक्ष घोषित कर डाला। यह भी हो सकता है कि ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिससे दहल, माधव और गौतम सरकार चलाने में ओली का साथ दें। हालांकि, फिलहाल किसी भी तरह की सुलह नहीं हुई है।