बाबिल ने अपनी पोस्ट में लिखा, ‘आपको पता है सिनेमा के स्टूडेंट के तौर पर मेरे पिता ने सबसे जरूरी चीज मुझे क्या सिखाई? मेरे फिल्म स्कूल जाने से पहले उन्होंने मुझे समझा दिया था कि मुझे अपने बलबूते बॉलिवुड में जगह बनानी है। इसी समय मैं यह भी बताना चाहता हूं यही हुआ। बॉलिवुड का कोई सम्मान नहीं था, 60 के दशक से लेकर 90 के दशक तक और न ही उनकी समझ की वैल्यू थी। वर्ल्ड सिनेमा में इंडियन सिनेमा के बारे में केवल एक लैक्चर होता है जिसे ‘बॉलिवुड ऐंड बेयॉन्ड’ कहा जाता है और उसमें भी लोग केवल मजाक बनाते हैं। मेरे लिए इंडियन सिनेमा के बारे में बात करना भी कठिन था क्योंकि असली फिल्में सत्यजीत रे और के. आसिफ ने बनाई थीं। आपको पता है ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि इंडियन ऑडियंस के तौर पर हमने विकसित होने से ही इनकार कर दिया है।’
अपने मरहूम पिता के बारे में बात करते हुए बाबिल ने लिखा, ‘मेरे पिता ने अपने पूरे सफर में विपरीत स्थितियों में भी ऐक्टिंग को ऊपर उठाने की पूरी कोशिश की लेकिन बॉक्स ऑफिस पर वो कुछ ऐसे सिक्स पैक वाले हंक्स से हार गए जो अपनी फिल्मों में एक लाइन के डायलॉग बोलते हैं और विज्ञान के नियमों को धता बताते हैं (और आपको समझना चाहिए कि बॉक्स ऑफिस पर विफल होने का मतलब है कि बॉलिवुड में ज्यादातर पैसा लगाने वाले सफल लोगों के पास जाएंगे, हम इसी दुष्चक्र में ही फंसे रह गए।) क्योंकि एक दर्शक के तौर पर हम यही सब देखना चाहते थे और इसी में हमको मजा आता रहा। हमको एंटरटेमेंट चाहिए जिसमें हमने अपनी सोच को बचाकर रखा ताकि सच के बारे में हमारे भुलावे कहीं बिखर न जाएं। इसलिए हमारी सोच में भी कोई बदलाव नहीं हुआ। मानवता के लिए सब कुछ बेहतर करने की सिनेमा की क्षमताओं को अलग-थलग कर दिया गया।’
आगे बाबिल लिखते हैं, ‘अब एक परिवर्तन आ रहा है, फिजाओं में एक नई खुशबू है। एक युवा एक नया मुकाम ढूंढ रहा है। हमें इसके लिए खड़ा होना चाहिए और इस कोशिश को दबाव से बचाने की कोशिश करनी चाहिए। मुझे बड़ा अजीब लगा जब कल्की को एक लड़के जैसी दिखने के लिए ट्रोल किया गया जब उन्होंने अपने बाल छोटे कर लिए थे। ये पूरी तरह से किसी की क्षमताओं को दबा देना है। अब सुशांत की मौत को लोगों ने एक पॉलिटिकल मुद्दा बना दिया है लेकिन अगर हम कुछ सकारात्मक परिवर्तन चाहते हैं, तो यही वक्त है इसे अपनाइये।’