
धोनी ने सौरभ गांगुली की कप्तानी में अपने इंटरनैशनल करियर की शुरुआत की। उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ चिट्टगांव में पहली बार टीम इंडिया की नीली जर्सी पहनी। लेकिन माही इस वनडे मैच में 0 रन बनाकर रन आउट हुए।
पाकिस्तान की टीम भारत दौरे पर थी। यहां सीरीज के दूसरे वनडे मैच में ही तब के कप्तान गांगुली ने उन्हें तीसरे नंबर पर बैटिंग के लिए भेजा। इससे पहले लंबे-लंबे छक्के जड़ने में धोनी का खूब नाम था लेकिन इंटरनैशनल क्रिकेट में अभी तक वह ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाए थे। लेकिन यहां मिले मौके को उन्होंने हाथों-हाथ लिया और 123 बॉल में 148 रन ठोककर भारतीय टीम का स्कोर 300 के पार पहुंचा दिया। इस पारी से धोनी ने टीम इंडिया में अपनी जगह पक्की कर ली। यह उनके वनडे करियर का 5वां मैच था।
साल 2005 में श्रीलंका के खिलाफ जयपुर में खेले एक मैच में भारत 299 रन के टारगेट का पीछा कर रहा था। एक बार फिर धोनी को नंबर 3 पर मौका मिला और उन्होंने यहां 50 ओवर विकेटकीपिंग करने के बाद मैच के अंत तक बैटिंग की और 183 रन ठोक डाले। धोनी का यह स्कोर आज भी उनका वनडे क्रिकेट में सर्वोच्च स्कोर है।
पहली बार टी20 वर्ल्ड कप खेला जा रहा था और महेंद्र सिंह धोनी ने कप्तानी कौशल से यहां इतिहास रच दिया। भारत न सिर्फ इस पहले वर्ल्ड टी20 के फाइनल में पहुंचा बल्कि उसने अपने चिर-प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को हराकर इस खिताब पर कब्जा भी जमाया।
यह वर्ल्ड कप भारत समेत बांग्लादेश और श्रीलंका में ही आयोजित हो रहा था। भारत ने यहां फाइनल में श्रीलंका को हराकर दूसरी बार यह खिताब अपने नाम किया। कपिल देव के बाद धोनी दूसरे भारतीय कप्तान हैं, जिन्होंने विश्व चैंपियन का खिताब अपने नाम किया।
इस खिताबी मुकाबले में भारत 275 रन के लक्ष्य का पीछा कर रहा था। सचिन और सहवाग (31 रन पर) जल्दी पविलियन लौट गए। इसके बाद विराट आउट हुए तो धोनी यहां 5वें नंबर पर बैटिंग पर उतरे। धोनी ने इस मैच में गंभीर के साथ मैच विनिंग साझेदारी निभाई और टीम इंडिया को विनिंग सिक्स जड़कर खिताब दिलाया।
साल 2013 में भारत अपनी घरेलू सीरीज में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेल रहा था। यहां चेन्नै टेस्ट में धोनी ने अपने टेस्ट करियर का एकमात्र दोहरा शतक जड़ा। धोनी ने यहां 224 रन बनाए और भारत ने यहां 8 विकेट से जीत दर्ज की।
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