अपना 'काला चिट्ठा' जमा करता था विकास दुबे

सुमित शर्मा, कानपुर
यूपी को दहलाने वाले कानपुर कांड के आरोपी हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का अभी तक पता नहीं चल सका है। इस बीच खुलासा हुआ है कि विकास को सुर्खियों में बने रहने का शौक था। उसके अपराधों का चिट्ठा जब अखबारों की सुर्खियां बनती थी तो उसे पढ़कर वह खुश होता था। अखबारों में छपी खबरों को खुद पढ़कर वह अपने साथियों को सुनाता था। इसका खुलासा उस वक्त हुआ जब पुलिस के सर्च ऑपरेशन में उसके घर से एक फाइल मिली।

इस फाइल में विकास दुबे ने अखबारों की कटिंग को संभालकर रखा था। अखबारों में विकास दुबे की जितनी भी खबरें छपी थी, उन सभी अखबारों की कटिंग उस फाइल में मौजूद थी। पिछले हफ्ते मोस्ट वॉन्टेड विकास दुबे ने अपने साथियों के साथ मिलकर 8 पुलिसकर्मियों की निर्मम हत्या कर दी थी। इस वारदात के बाद से वह एक बार फिर से सुर्खियों में है। इस हत्याकांड में कानपुर रेंज की पुलिस और एसटीएफ समेत पुलिस की दर्जनों टीमें उसकी तलाश में जुटी हैं। खूंखार अपराधी विकास दुबे पुलिस की इस तरह की कार्रवाई का कई बार सामना कर चुका है। राजनीतिक संरक्षण से उसे कई बार जीवनदान मिला।

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अपने कारनामों की खुद फाइल तैयार की थी
खूंखार अपराधी विकास दुबे के लिए के लिए आज हिस्ट्रीशीटर और मोस्ट वॉन्टेड जैसे शब्द इस्तेमाल हो रहे हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि विकास दुबे के लिए हिस्ट्रीशीटर और मोस्ट वॉन्टेड शब्दों का इस्तेमाल आज से 20 साल पहले भी किया जा चुका है। 2001 में विकास दुबे ने बीजेपी नेता और दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या शिवली थाने में घुसकर कर दी थी। विकास दुबे ने उस वक्त अखबार में छपी खबरों की कटिंग सहेजकर रखी थी। इसका भी खुलासा विकास दुबे की उस फाइल से हुआ जिसमें वह अखबारों की कटिंग रखता था।

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जेल के अंदर भी थी साठगांठ

विकास दुबे जब जेल में था तो वह बैरक से ज्यादा समय जेल अस्पताल में बिताता था। इससे आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसका जेल में भी वर्चस्व कायम था। राजनीतिक साठगांठ की वजह से उसकी जेल के अंदर भी हुकूमत चलती थी। जेल के अंदर भी उसके लिए हर एक सुख-सुविधा के पुख्ता इंतजाम थे।

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संतोष शुक्ला की हत्या के बाद पुलिस पर उठे थे सवाल
तत्कालीन श्रम मंत्री संतोष शुक्ला की 2001 में शिवली थाने में हत्या कर दी गई थी। संतोष शुक्ला हत्याकांड में भी पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए थे। उस वक्त यह सीओ (क्षेत्राधिकारी) और परगनाधिकारी (एसडीएम) पर लापरवाही का आरोप लगा था। संतोष शुक्ला के समर्थकों ने कहा था कि शिवली थाने से सीओ और एसडीएम को वायरलेस पर सूचना दी गई। अगर दोनों अधिकारी मौके पर पहुंच जाते तो बवाल शांत हो जाता और संतोष शुक्ला की हत्या नहीं होती।

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