एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी धारावी (Covid 19 in Dharavi) को लगभग कोरोना मुक्त करने में अहम भूमिका निभाने वाले जी-नॉर्थ वॉर्ड के असिस्टेंट कमिश्नर किरण दिघावकर (Kiran Dighavkar) ने कहा कि हमारा एकमात्र टारगेट चेस द वायरस था। क्योंकि यहां की भौगोलिक स्थिति और लोगों की जीवनशैली ऐसी है कि हम उनके सामने आने का इंतजार नहीं कर सकते थे। इसलिए हमने स्क्रीनिंग, फीवर क्लिनिक, सर्वे और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग पर जोर दिया। उसका नतीजा आज सामने है। कभी धारावी में 100 से अधिक केस एक दिन में सामने आते थे, जो अब 2 केस तक आ गए हैं। कोरोना को रोकने का धारावी मॉडल क्या है? इसी मुद्दे पर किरण दिघावकर से बातचीत के प्रमुख अंशः
धारावी मॉडल क्या है, जिसके जरिए कोरोना पर काफी हद तक काबू पाया गया?
1 अप्रैल को धारावी में कोरोना का पहला केस सामने आने के पहले ही हमें आशंका थी कि यहां स्थिति बिगड़ सकती है। क्योंकि 80 प्रतिशत लोग सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं। 8 से 10 लाख आबादी वाले उस इलाके में एक छोटे से घर में 10 से 15 लोग रहते हैं। इसलिए सबको न तो होम आइसोलेशन किया जा सकता है और न ही लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर सकते हैं।
इसीलिए जब मामले सामने आने लगे तब हमने चेस द वायरस के तहत काम करना शुरू किया। इसके तहत कॉन्ट्रेक्ट ट्रेसिंग, फीवर कैंप, लोगों को आइसोलेट करना और टेस्ट करना शुरू किया। स्कूल, कॉलेज को क्वारंटीन सेंटर बनाया गया। वहां अच्छे डॉक्टर, नर्स और 3 टाइम अच्छा खाना दिया गया। रमजान के समय मुस्लिम लोगों को डर था, लेकिन क्वारंटीन सेंटर में बेहतर सुविधाओं को देखते हुए वे खुद सामने आए।
इससे हमारा काम आसान हो गया। 11 हजार लोगों को इंस्टिट्यूशनल क्वारंटीन किया गया। साईं हॉस्पिटल, फैमिली केयर और प्रभात नर्सिंग होम से हमें काफी मदद मिली। इन्हीं सब प्रयासों का नतीजा है कि यहां सिर्फ 23 प्रतिशत ऐक्टिव केस हैं। 77 प्रतिशत लोग ठीक होकर अपने घर जा चुके हैं।
कितने क्वारंटीन सेंटर अब तक बंद किए गए?
राजीव गांधी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, धारावी म्युनिसिपल स्कूल ट्रांजिट कैंप और स्काउड बेड हॉल दादर को बंद कर दिया गया है। क्योंकि यहां अब मरीजों को रखने की जरूरत नहीं थी। कुल 12 क्वारंटीन सेंटर बनाए गए थे, उनमें से 3 बंद हो गए।
धारावी में कोरोना को रोकने बीएमसी और मेडिकल की कितनी टीमें लगी थीं?
धारावी में कोरोना संक्रमण पर लगाम लगाना बड़ी चुनौती थी। इसलिए हमने पूरा होमवर्क कर टीम तैयार की। बीएमसी के कुल 2450 लोग यहां काम कर रहे थे। उसमें सफाई वाला से लेकर पानी खोलनेवाला तक शामिल था। इसी तरह 1250 लोगों की मेडिकल टीम कॉन्ट्रेक्ट पर थी। इसमें 12 से 13 डॉक्टर शामिल थे। सभी ने दिन-रात काम कर यहां कोरोना को हराने में अहम भूमिका निभाई।
धारावी में सार्वजनिक शौचालय बड़ी चुनौती है। इस समस्या से कैसे निपटा गया?
हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती सार्वजनिक शौचालय ही थे, जिनकी संख्या 450 से अधिक है। शुरू में दिन में दो से तीन बार सार्वजनिक शौचालयों को सैनिटाइज किया जाता था। जब तेजी से केस बढ़े तक दिन में 5 से 6 बार सैनिटाइजेशन किया जाने लगा। शौचालय के बाहर हैंडवाश रखा जाता था। शुरू में चोरी हो गए। लेकिन, बाद में उसकी व्यवस्था की गई। डेटॉल और हिंदुस्तान यूनिलीवर कंपनी ने यहां बड़े पैमाने पर हैंडवाश उपलब्ध कराए। लोगों में साबुन बांटा गया। एनजीओ व अन्य संस्थाओं ने काफी मदद की।