चीन के विस्तारवादी नीतियों और भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर उसके अपने ही अब जिनपिंग सरकार पर सवाल उठाने लगे हैं। चीनी सामरिक मामलों के एक विशेषज्ञ ने कहा कि कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत की सामरिक शक्ति को गलत आंका है। जिसने भारत के 1962 के जख्मों को भी ताजा कर दिया है। भारत, अमेरिका, जापान, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस से एक साथ तनाव बढ़ाकर चीनी नीति नियंताओं ने भारी गलती की है।
तनाव कम होने के आसार नहीं
चीन के सामरिक विशेषज्ञ शी जियांगताओ ने एक लेख में कहा कि भले ही भारत और चीन ने सीमा पर तनाव कम करने को लेकर रूचि दिखाई है। लेकिन इसका कोई संकेत नहीं मिल रहा कि यह तनाव जल्द खत्म होने वाला है। दोनों ही देश सीमावर्ती इलाकों में अपने सैनिकों और हथियारों की तैनाती को लगातार बढ़ा रहे हैं।
पेइचिंग और दिल्ली के बीच बढ़ी दूरी
उन्होंने कहा कि चीन के इस कदम से पेइचिंग और नई दिल्ली के बीच दूरी और बढ़ रही है, जिससे वैश्विक स्तर पर चीन के लिए बुरे हालात बनने वाले हैं। भारत और अमेरिका अपने सामरिक सहयोग को तेजी से बढ़ा रहे हैं। इससे चीन के लिए खतरा और बढ़ता जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर चीन ने सीमा पर तनाव नहीं बढ़ाया होता तो भारत और अमेरिका के बीच सहयोग इतनी तेजी से नहीं बढ़ता।
भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों पर गहरा असर
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनके शीर्ष राजनयिकों ने पिछले दो वर्षों में भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों को एक अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ाया था। लेकिन, सीमा पर बढ़ते तनाव से दोनों देशों के बीच विश्वास में कमी आई है जिसका असर आर्थिक संबंधों पर भी देखने को मिल रहा है।
इसलिए चीन ने भारत से लिया पंगा
शी जियांगताओ ने कहा कि क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत का उदय, भारत और पाकिस्तान के बीच शक्ति संतुलन और अमेरिका के साथ भारत का गठबंधन ने चीन को कड़े कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। हालांकि, इस दौरान चीनी नीति नियंता भारत की ताकत का सही अंदाजा नहीं लगा सके।