नेपाल: ओली ने तोड़ी पार्टी तो क्या होगा सीट-गणित

काठमांडू
नेपाल में सियासी घमासान के बीच इस बात को लेकर अटकलें जारी हैं कि आखिर प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अपने कुर्सी कैसे बचाएंगे। वह इस्तीफा देंगे या नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी को तोड़कर पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ को बड़ा झटका देंगे। हालांकि, फिलहाल माना जा रहा है कि यह मतभेद बातचीत और समझौते से सुलझाए भी जा सकते हैं लेकिन अगर पार्टी टूटी और संसद भंग नहीं हुई, ऐसे में क्या संभावना होगी, इस पर नजर डालते हैं।

फिलहाल ऐसा है सीटों का बंटवारा
नेपाल के सदन (House of Representatives) में 275 सदस्य हैं। सत्ताधारी NCP के पास 174 सीटें हैं, मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस के पास 63 सीटें हैं। कुछ वक्त पहले बनी जनता समाजबादी पार्टी (JSP) के पास कुल 34 सीटें हैं। इनके अलावा 4 निर्दलीय सदस्य कमल थापा (राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी), प्रेम सुवल (नेपाल वर्कर्स ऐंड पेजेंट्स पार्टी), दुर्गा पौडल (पीपल्स फ्रंट) और छाका बहादुर लामा (निर्दलीय) भी सदन में शामिल हैं। वहीं, 4 सदस्य निलंबित चल रहे हैं और एक सदस्य का निधन हो चुका है। इससे कुल सदस्यों की संख्या 270 रह जाती है।

किस खेमे में कितने समर्थक?
बहुमत से सरकार बनाने के लिए सदन के 136 सदस्यों का समर्थन जरूरी है। ऐसे में अगर ओली पार्टी को विभाजित करते हैं और माधव कुमार और दहल के खेमे को 42 सदस्यों का समर्थन मिल जाता है, तो ओली की कुर्सी पर खतरा हो सकता है, भले ही निर्दलीय सदस्य ओली को समर्थन दें। हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं है कि ओली के समर्थन में कितने सदस्य हैं और दहल के समर्थन में कितने।

…तो बन जाएगी दहल-माधव सरकार
पार्टी के अंदर के नेताओं का कहना है कि ओली के खेमे में 40% (108) सदस्य हो सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो दहल-माधव के लिए बहुमत हासिल कर सरकार बनाना आसान हो सकता है। दहल और माधव की पार्टी नेपाली कांग्रेस या JSP और निर्दलीय सदस्यों के समर्थन से सरकार बना सकती है। हालांकि, अगर नेपाली कांग्रेस सहमत हो जाए तो ऐसा भी हो सकता है कि ओली की पार्टी नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन कर ले।

यूं उठीं पार्टी के विभाजन की अटकलें
फिलहाल पार्टी की स्टैंडिंग कमिटी की बैठक शनिवार को होने वाली है। इस पर देश की नजरें टिकी हैं। पीएम ओली ने गुरुवार को पार्टी की मीटिंग में जाने की जगह राष्ट्रपति बिद्या भंडारी के आवास का रुख किया था और बजट सत्र को रद्द करा दिया था। इससे उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की नौबत टल गई थी। हालांकि, इसके बाद से ही अटकलें लगने लगी थीं कि ओली अध्यादेश लाकर पार्टी को तोड़ सकते हैं ताकि कुर्सी बचा सकें।

(Source: myrepublica)

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