लंबी प्रतीक्षा के बाद गुरुवार सुबह मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट का विस्तार तो हो गया, लेकिन मंत्रिमंडल को देखकर यह नहीं लगता कि यह उनकी सरकार है। मंत्रिमंडल में चौहान के विश्वासपात्रों की नितांत कमी है। मंत्रिमंडल के 11 सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं जो करीब चार महीने पहले ही बीजेपी में शामिल हुए हैं और पार्टी में उनकी स्वीकार्यता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। गुरुवार को शपथ लेने वालों में 28 कैबिनेट स्तर के और 8 राज्य मंत्री हैं। नए मंत्रियों के विभागों का बंटवारा नहीं किया गया है।
ये बने मंत्री
गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, विजय शाह, जगदीश देवड़ा, प्रेम सिंह पटेल, यशोधरा राजे सिंधिया, ओमप्रकाश सखलेचा, बृजेंद्र प्रताप सिंह, विश्वास सारंग, ऊषा ठाकुर, मोहन यादव, अरविंद भदौरिया, भारत सिंह कुशवाह, इंदर सिंह परमार, राम खेलावन पटेल और राम किशोर कांवरे शामिल हैं। नए मंत्रियों में राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, प्रदुम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, महेंद्र सिसोदिया, गिरिराज दंडोतिया, सुरेश धाकड़, ओपी एस भदौरिया, प्रभुराम चौधरी और ब्रिजेंद्र सिंह यादव को ज्योतिरादित्य खेमे का माना जाता है। कांग्रेस से बीजेपी में आए बिसाहू लाल सिंह, एंदल सिंह कंसाना और हरदीप सिंह डंग ने भी आज शपथ ली है।
पुराने नेता छूटे
शिवराज लाख कोशिशों के बावजूद रामपाल सिंह और गौरीशंकर बिसेन जैसे अपने पसंदीदा नेताओं को मंत्री नहीं बना सके। इससे पहले उनकी कैबिनेट का हिस्सा रहे कई सदस्यों को इस बार मंत्री पद से दूर रहना पड़ा है। कहा जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान ने नए चेहरों को मौका देने के लिए शिवराज के पसंदीदा नामों पर कैंची चला दी।
भरोसेमंदों की कमी
नई कैबिनेट में दो डिप्टी सीएम बनाने की चर्चा है, लेकिन इनमें से एक भी चौहान का भरोसेमंद नहीं है। नरोत्तम मिश्रा के साथ उनके मतभेदों की बात किसी से छिपी नहीं है। मिश्रा पार्टी के केंद्रीय नेताओं के भरोसेमंद हैं और शिवराज सरकार के लिए भी कई बार संकटमोचक की भूमिका निभा चुके हैं। कैबिनेट के विस्तार के बाद अलग-अलग धड़ों को संभाले रखने में शिवराज की उन पर निर्भरता बढ़ सकती है, लेकिन यह उनके लिए अच्छी खबर नहीं है। इसी तरह तुलसी सिलावट की कार्यशैली, शिवराज के तरीकों से मेल नहीं खाते। वे कैबिनेट में सिंधिया गुट के सबसे सीनियर नेता हैं, लेकिन अपने काम करने के तरीकों के चलते अक्सर विवादों में आ जाते हैं।
नए चेहरों में भी शिवराज की नहीं चली
शिवराज अपने पसंदीदा पुराने बीजेपी नेताओं को तो मंत्री नहीं ही बना सके, नए चेहरों में भी उनके पसंदीदा लोग कम ही हैं। कई ऐसे लोग पहली बार मंत्री बने हैं, जो शिवराज के लिए मुसीबत बन सकते हैं। इंदौर से रमेश मेंदोला को राज्य मंत्री बनाया गया है। कैलाश विजयवर्गीय के समर्थक मेंदोला कई बार सीएम की अप्रत्यक्ष आलोचना कर चुके हैं। मेंदोला को मंत्री बनाने की मांग पहले भी कई बार हुई, लेकिन शिवराज इससे इंकार करते रहे। अब जबकि विजयवर्गीय राष्ट्रीय महासचिव बन चुके हैं, मेंदोला के नाम को पार्टी आलाकमान ने मंजूरी दे दी और शिवराज को उन्हें मजबूरी में मंत्रिमंडल में शामिल करना पड़ा है।
महाराज को साधने की मजबूरी
शिवराज की कैबिनेट के 11 सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं। वे सीएम से ज्यादा सिंधिया के प्रति प्रतिबद्ध हैं। इसलिए प्रदेश में राजकाज चलाने के लिए उन्हें सिंधिया को लगातार साध कर रखना होगा।
कैबिनेट विस्तार की लंबी प्रतीक्षा का गुरुवार को भले अंत हो गया हो, के लिए मुश्किलों का नया दौर भी इसके साथ शुरू हो सकता है। नए चेहरों को मौका देने से पुराने पार्टी नेताओं को मंत्री पद से दूर रहना पड़ा है। वे सीएम के खिलाफ असंतोष जता सकते हैं। शिवराज को इन्हें संभालने के साथ सिंधिया-समर्थकों का भी ध्यान रखना होगा। ऐसा करने में वे कितना सफल होंगे, वही सीएम के रूप में उनके चौथे कार्यकाल की कामयाबी या नाकामयाबी को तय कर सकता है।