संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद () में बुधवार की शाम चीन को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब उसके एक प्रेस वक्तव्य को अमेरिका ने अंतिम क्षणों अपनी आपत्ति जताकर उसे रुकवा दिया। दरअसल चीन ने सोमवार को कराची स्टॉक एक्सचेंज (Terror Attach at Karachi Stock Exchange) में हुए आतंकी हमले की निंदा करते हुए भारत के खिलाफ अपनी यह चाल चली थी।
लेकिन उसके इस प्रस्ताव पर दो अलग-अलग देशों द्वारा आपत्ति जताने से उसके झटका लगा है। इस प्रेस वक्तव्य में देरी कराने वाला अमेरिका दूसरा देश था। उससे पहले जर्मनी ने मंगलवार को इस स्टेटमेंट को जारी होने से कुछ मिनट पहले अपनी आपत्ति जता कर रोक दिया था। दोनों देशों का यह कदम भारत के साथ उनके मजबूत रिश्तों की ओर एक शांत इशारा है।
इससे पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने सोमवार को कराची स्टॉक एक्सचेंज में हुए इस हमले का आरोप भारत पर लगाया था। इस हमले में चार सुरक्षा गार्ड, एक पुलिस अधिकारी और 4 आतंकियों समेत 9 लोगों की मौत हो गई थी।
चीन इस हमले में मारे गए लोगों के प्रति शोक प्रकट करते हुए पाकिस्तान के साथ अपने मजबूत संबंधों को दर्शाने के मकसद से यह ड्राफ्ट तैयार किया था। चीन ने यह प्रेस नोट मंगलवार को पेश किया था, और यूएनएससी के नियमों के अनुसार, न्यूयॉर्क के स्थानीय समयानुसार अगर कोई भी सदस्य शाम 4 बजे तक इस पर आपत्ति नहीं जताता है, तो पास करार समझा जाता है।
इसी इरादे से चीन ने इसे ‘साइलेंस’ प्रोसीजर के तहत पेश किया था। यह स्टेटमेंट ऐसे आतंकी हमलों की निंदा करने के लिए सामान्य प्रक्रिया थी, जो UNSC ऐसे हमलों के बाद समय-समय पर जारी करता रहता है। साइलेंस प्रोसिजर के तहत, अगर तय डेडलाइन के वक्त तक किसी को ऐसे प्रस्ताव पर आपत्ति नहीं होती तो इसे पास माना जाता है।
लेकिन जर्मनी ने मंगलवार शाम को 4 बजे के करीब इसमें दखल दिया। यूएन में जर्मनी के राजदूत ने कहा कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री एसएम कुरैशी इस हमले के लिए भारत को जिम्मेदार बताया है, जो स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस पर चीनी राजदूत ने जोरदार विरोध करते हुए कहा कि घड़ी तय समय 4 बजे से आगे निकल गई है। लेकिन इस प्रस्ताव पर डेडलाइन को 1 जुलाई (बुधवार) सुबह 10 बजे तक के लिए बढ़ा दिया गया।
लेकिन आज जैसे 10 बजे के करीब घड़ी की सुइयां पहुंची तो अमेरिका ने भी अंतिम क्षणों में इस प्रस्ताव पर अपनी आपत्ति जता दी। जानकारों का मानना है कि अब भले यह स्टेटमेंट जारी भी हो जाए लेकिन चीन और पाकिस्तान को यूएनएससी में पीछे धकेलने का अर्थ बड़े स्तर पर इन दोनों देशों के खिलाफ वैश्विक नाराजगी के तौर पर देखा जा रहा है।