एक नई स्टडी में बताया गया है कि 2030 तक पूरे भारत में बारिश में 15 पर्सेंट की कमी आ जाएगी। देशभर में बारिश के ट्रेंड पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया समेत दो इंस्टिट्यूट ने 115 सालों के डेटा की स्टडी की है। आईआईटी इंदौर और गौर बांगा यूनिवर्सिटी समेत जामिया के शोधकर्ताओं की एक टीम ने 1901 से 2015 के डेटा का अध्ययन कर बताया है कि 1951 के बाद से देशभर के सभी मौसमी खंडों में बारिश में भारी गिरावट आई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक खेती पर निर्भर है और हमारी खेती, बारिश पर निर्भर है। पानी का कम होते जाने और भविष्य में पानी की मांग बढ़ने को देखते हुए यह स्टडी बेहद अहम है। रिसर्च पेपर के को-ऑथर एवं जामिया के भूगोल विभाग के प्रो. अतीकुर्रहमान ने बताया कि हमारी स्टडी में 1901-1950 के दौरान बारिश वर्षा की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी देखी गई है, लेकिन 1951 के बाद बारिश में काफी गिरावट आई।
1970 के बाद बारिश के पैटर्न में नेगेटिव बदलाव
मॉनसून के दौरान भारत के अधिकांश मौसम खंडों में बारिश काफी कम हुई है। पश्चिमी भारत के सब-डिविजन में बारिश के सालभर के मौसमी बदलाव सबसे ज्यादा थे, जबकि सबसे कम बदलाव पूर्वी और उत्तरी भारत में पाए गए। नेचर ग्रुप के जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में यह स्टडी ‘एनलाइजिंग ट्रेंड ऐंड फोरकास्टिंग ऑफ रेनफॉल चेंजेज इन इंडिया’ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। टीम ने देश के 34 मौसम संबंधी सब-डिविजन में मौसमी बारिश (सर्दी, गर्मी, मानसून और पोस्ट मानसून) की प्रवृत्ति की स्टडी के लिए सेन मैथड का इस्तेमाल किया है।
लगभग सभी सब-डिविजन में 1970 के बाद बारिश के पैटर्न में नेगेटिव बदलाव आया है। उत्तर-पूर्व, दक्षिण और पूर्वी भारत के सब-डिविजनों में बारिश काफी कम हुई है, जबकि सब-हिमालयन बंगाल, गंगीय बंगाल, जम्मू-कश्मीर, कोंकण और गोवा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और मराठवाड़ा ने पॉजिटिव ट्रेंड नजर आया है। इसके अलावा, 2030 के लिए बारिश की भविष्यवाणी में भारत की समग्र वर्षा में लगभग 15 प्रतिशत की गिरावट की आशंका है। भारत भर में वर्षा के पैटर्न की भविष्यवाणी के लिए द आर्टिफिशल न्यूरल नेटवर्क-मल्टीलेअर परसेप्ट्रॉन (एनन-एमएलपी) का इस्तेमाल किया गया है।