UP कांग्रेस चीफ अजय लल्लू ने सुनाई 'जेल व्यथा'

लखनऊ
पैदल जा रहे श्रमिकों को बस से भेजने की पेशकश पर कांग्रेस और सरकार में की खींचतान ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को जेल पहुंचा दिया। तकरीबन 29 दिन की जेल काटने के बाद मंगलवार को उनकी जमानत हुई और बुधवार को रिहा होकर वे प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पहुंचे। खुद को राहुल और प्रियंका का सिपाही बताने वाले लल्लू कहते हैं कि राजनीति में मुकदमे इनाम होते हैं और जेल अस्थायी घर। कांग्रेस श्रमिकों और वंचितों की सेवा में लगी थी। इससे डरी सरकार ने जेल भेज दिया। लेकिन हम डरने वाले नहीं हैं। मैं फिर जेल जाने के लिए तैयार हूं। यह 21वीं जेल यात्रा थी। पढ़िए एनबीटी संवाददाता
रोहित मिश्रा से
अजय कुमार लल्लू का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू।

29 दिन की जेल। क्या आपको लगता है, यह इतना बड़ा मामला था?
यह मामला नहीं, सरकार का डर था। सरकार की नाकामी के दौर में वंचितों और श्रमिकों के हित में कांग्रेस ही तो खड़ी थी। बाकी कौन था? न सपा के लोग निकले, न बसपा के। हम सेवा कर रहे थे तो सरकार डर रही थी हमसे। श्रमिकों तक हमारी पहुंच, सरकार की नाकामी और न इंतजामी दिखा रही थी। बस इसीलिए जेल भेजा गया। आरोप झूठे थे। जो लिस्ट हमने सरकार को भेजी थी, उसकी जांच राजस्थान सरकार ने भी करवाई। 1,032 बसें सही थीं। यहां की सरकार तो कुछ और बता रही थी। ऐसा कैसे हो सकता है? सरकार ने बस झूठ का तानाबाना बुना था।

जेल की गतिविधियों को क्या आप साझा करना चाहेंगे?
जेल में सरकार के इशारे पर मुझे परेशान करने की हर कोशिश हुई। लेकिन वे लोग भूल गए थे कि मैं पहली बार जेल नहीं गया हूं। इसके पहले ऐसे ही आंदोलनों में 20 बार जेल जा चुका हूं। दिनचर्या का हिस्सा यही था कि सुबह कांग्रेस के कार्यकर्ता काफी सामग्री भिजवा देते थे। उसे मैं हर बैरक में बंटवा देता था।

आप परेशान किए जाने का आरोप लगा रहे हैं। इसे विस्तार से बताएंगे?
परेशान किए जाने का मतलब हर तरह से परेशान करना। राजनीतिक बंदियों से जैसा बर्ताव होने की परंपरा रही है, वैसी नहीं थी। राजनीतिक बंदियों को बावर्ची मिलता है, घर से सामान आ जाता है। बाकी और भी तरह की चीजें। खैर, सरकार के इशारे पर मेरे साथ जैसा बर्ताव करने के लिए कहा गया था, किया गया। 13 दिन तक तो बैरक में टीवी तक नहीं लगाया गया। अखबार नहीं थे।

और कुछ कहना चाहेंगे?
जेल के कैदियों की स्थिति काफी खराब है। बीते तीन महीने से कैदियों के परिवारीजनों को मिलने नहीं दिया जा रहा है, इससे वे खासे डिप्रेशन में हैं। एक कैदी ने तो आत्महत्या तक करने की कोशिश की। सरकार को इनकी तरफ भी विचार करना चाहिए। मुलाकात-बातचीत आदि के विषय में सरकार सोचे।

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